Sunday, 9 May 2021

औरत बाद में माता पहले

नारी भी बुद्ध हो सकती थी
वन में  बैठ तपस्या  कर सकती थी
भगवान  कहला सकती थी
तब राहुल की देखभाल  कौन करता

सीता भी राम हो सकती थी
मर्यादा  पुरुषोत्तम  की उपाधि  प्राप्त  कर सकती थी
तब लव - कुश  का पालन  - पोषण  कौन करता
वनदेवी  बनी रही बाल्मीकि  आश्रम  में

यशोदा  और देवकी बनी
कुंती  और गांधारी बनी
जीजाबाई बनी और दत्तक  पुत्र  पीठ पर बांध  लक्ष्मी बाई 

राजा दशरथ  के  साथ  देवासुर संग्राम  में  भाग लेने वाली  क्षत्राणी भरत की माता बनने के लिए  कलंकित  भी हुई
माॅ  बेटे के लिए  क्या  कर सकती  है
यह तो महारानी  कैकयी  ने बता दिया
प्यार  की पराकाष्ठा
तभी तो साकेत  में  वह कहती है
निज स्वर्ग  इसी पर वार दिया  था मैंने
हर तुम  तक  से अधिकार  लिया था मैंने
वही  लाल आज यह रोता  है
माता  कुमाता नहीं  होती पुत्र  कुपुत  भले हो
और आज तो मैं  कुमाता हो गई
तभी राम कहते  हैं
धन्य धन्य  वह एक लाल की माई
जिस जननी  ने जना भरत सा भाई
      भरत की माँ बनना आसान  नहीं  था ।कैकयी  की शिक्षा  थी भरत  जैसा भाई  राम को मिला

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