Monday, 24 January 2022

मार्मिक कहानी

💡 *फ्यूज बल्ब* 🪝

हाउसिंग सोसायटी में एक बड़े अफसर रहने के लिए आए, जो हाल ही में सेवानिवृत्त (retired) हुए थे।‌ ये बड़े वाले रिटायर्ड अफसर, हैरान परेशान से, रोज शाम को सोसायटी के पार्क में टहलते हुए, अन्य लोगों को तिरस्कार भरी नज़रों से देखते और किसी से भी बात नहीं करते थे।

एक दिन एक बुज़ुर्ग के पास शाम को गुफ़्तगू के लिये बैठे और फिर लगातार बैठने लगे। उनकी वार्ता का विषय एक ही होता था - मैं इतना बड़ा अफ़सर था कि पूछो मत, यहाँ तो मैं मजबूरी में आ गया हूँ, इत्यादि इत्यादि।

और वह बुजुर्ग शांतिपूर्वक उनकी बातें सुना करते थे।

‌एक दिन जब सेवानिवृत्त अफसर की आँखों में कुछ प्रश्न , कुछ जिज्ञासा दिखी, तो बुजुर्ग ने ज्ञान दे ही डाला।

उन्होंने समझाया - आपने कभी फूज बल्ब देखे हैं ? बल्ब के फ्यूज हो जाने के बाद क्या कोई देखता है‌ कि‌ कौन बल्ब‌ किस कम्पनी का बना‌ हुआ था, कितने वाट का था, उससे कितनी रोशनी या जगमगाहट होती थी ? बल्ब के‌ फ्यूज़ होने के बाद इनमें‌‌ से कोई भी‌ बात बिलकुल ही मायने नहीं रखती। लोग ऐसे‌ बल्ब को‌ कबाड़‌ में डाल देते‌ हैं । है‌ कि नहीं ?

जब उस‌ रिटायर्ड‌ अधिकारी महोदय ने सहमति‌ में सिर‌ हिलाया‌ तो‌ बुजुर्ग बोले‌ - रिटायरमेन्ट के बाद हम सब की स्थिति भी फ्यूज बल्ब जैसी हो‌ जाती है‌। हम‌ कहां‌ काम करते थे‌, कितने‌ बड़े‌/छोटे पद पर थे‌, हमारा क्या रूतबा‌ था‌ यह‌ सब‌ कुछ भी कोई मायने‌ नहीं‌ रखता‌ ।

कुछ देर की शांति के बाद अपनी बात जारी रखते‌ हुए फिर वो बुजुर्ग‌ बोले कि मै सोसाइटी में पिछले 5 वर्ष से रहता हूं और आज तक किसी को यह नहीं बताया कि मै दो बार संसद सदस्य रह चुका हूं। वे जो वर्मा जी हैं, रेलवे के महाप्रबंधक थे। वे सिंह साहब सेना में ब्रिगेडियर थे। वो मेहरा जी इसरो में चीफ थे। ये बात भी उन्होंने किसी को नहीं बतायी है, मुझे भी नहीं, पर मैं जानता हूँ ।

सारे फ्यूज़ बल्ब करीब - करीब एक जैसे ही हो जाते हैं, चाहे जीरो वाट का हो 40, 60, 100 वाट, हेलोजन या फ्लड-लाइट का हो‌, कोई रोशनी नहीं‌, कोई उपयोगिता नहीं; यह बात आप जिस दिन समझ लेंगे, आप शांतिपूर्ण तरीके से समाज में रह सकेंगे।

उगते सूर्य को जल चढा कर सभी पूजा करते हैं पर डूबते सूरज की कोई पूजा नहीं‌ करता‌। यह बात जितनी जल्दी समझ में आ जाएगी, उतनी जल्दी जिन्दगी आसान हो जाएगी।

कुछ लोग अपने पद को लेकर इतने वहम में होते‌ हैं‌ कि‌ रिटायरमेन्ट के बाद भी‌ उनसे‌ अपने अच्छे‌ दिन भुलाये नहीं भूलते। वे अपने घर के आगे‌ नेम प्लेट लगाते‌ हैं - .......

सक्सेना/गुर्जर/मीणा/गुप्ता/मेघवाल/चौधरी, रिटायर्ड आइ.ए.एस‌....... सिंह ...... रिटायर्ड जज‌ आदि - आदि।

ये‌ रिटायर्ड IAS‌/RAS/sdm/तहसीलदार/पटवारी/बाबू/प्रोफेसर/प्रिंसिपल/अध्यापक अब कौन सा‌ पद है भाई ? माना‌ कि‌ आप बहुत बड़े‌ आफिसर थे‌, बहुत काबिल भी थे‌, पूरे महकमे में आपकी तूती बोलती‌ थी‌ पर अब क्या?

अब तो‌ आप फ्यूज बल्ब ही तो‌ हैं‌।
यह बात कोई मायने‌ नहीं रखती‌ कि‌ आप किस विभाग में थे‌, कितने‌ बड़े‌ पद पर थे‌, कितने‌ मेडल‌ आपने‌ जीते‌ हैं‌

अगर‌ कोई बात मायने‌ रखती है‌ तो वह‌ यह है कि

आप इंसान कैसे‌ है‌?
आपने‌ कितनी जिन्दगी‌ को छुआ है‌ ?
आपने आम लोगों को कितनी तवज्जो दी
पद पर रहते हुए कितनी मदद की
समाज को क्या दिया?
ज़रूरतमंद व अपने समाज के गरीब लोगों से कैसे रिश्ता/व्यवहार रखा?

लोग आपसे‌ डरते‌ थे‌ कि‌ आपका सम्मान करते‌ थे ?

अगर‌ लोग आपसे डरते थे‌ तो‌ आपके‌ पद से हटते ही उनका वह‌ डर हमेशा के‌ लिए खत्म हो जाएगा।

पर अगर लोग आप का सम्मान करते हैं तो‌

यह‌ सम्मान‌ आपके पद विहीन‌ होने‌ पर भी कायम रहेगा‌। आप मरने के बाद भी उनकी यादों में, उनके दिलों में जिन्दा रह सकते हैं।

हमेशा याद रखिए

बड़ा अधिकारी‌/कर्मचारी बनना बड़ी बात नहीं‌, बड़ा‌ इंसान‌ बनना‌ बड़ी‌ बात जरूर है।
      बड़ा दिल रखिए। सदा उदार बनिए । किसी की मदद का कोई मौका मत चूकिए। कोई भेदभाव नहीं ।सब अपने ही है। इंसान बड़ा बनता है अपने कर्मो से न कि पैसे रुतबे से। यह विचारणीय है। .
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