Tuesday, 1 June 2021

गाँव अब पहले जैसा नहीं रहा

गाँव  अब वह गाॅव नहीं  रहे
पंचायते अब वह पहले जैसी नहीं  रही
समाज  अब पहले जैसा नहीं  रहा
परिवार  अब पहले जैसा नहीं  रहा

विकास की ऑधी  भी पहुँची  है वहाँ
अब मेहमान आने पर रस और चना - कुरमुरा  नहीं
नमकीन और चाय परोसी  जाती है
अब लुंगी- धोती ,पाजामा- कुर्ता  नहीं
हाफ पैंट और जींस  पहना जाता है

अब हाथ में  फावडा  कुदाल नहीं  मोबाईल  रहता है
साईकिल  नहीं  बाइक पर सवारी की जाती है
चलना  तो दूर की बात
हर दूसरे दिन मांस  - मदिरा पर ताव
काम हो या न हो
ठाठ खूब चाहिए

अब महफिल  नहीं  सजती
न बैठकें  ही जमती है
हर कोई  अपने मे  व्यस्त हैं

अब आ रहा कोटा से सस्ता अनाज
सरकार  से भी निधि
तरह - तरह की पेंशन  की भरमार  है
मेहनत  की  कोई नहीं  दरकार है
पेट तो भर ही जाएंगा
गुजारा चल ही जाएंगा
तभी निठल्लो  की भी भरमार  है

सबका साथ सबका विकास
सबको मकान
सबको शौचालय
सबको भोजन
यह तो सरकार  की  पेशकश  है
जो ज्यादा  देगा वह ही जीतेगा
भ्रष्टाचार  की बात तो हवा हवाई
सब ऊपर से नीचे तक लिप्त है
खातें में  पैसा  आया  तो क्या हुआ
उस पर अधिकार  सभी का है
प्रधान  से लेकर  आला अफसर  तक

गाँव  अब वह गाॅव नहीं  रहें
न वह पहले जैसी बात रहीं।

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