Thursday, 10 June 2021

वह और मैं

वह बहुत  तेज  थी
बहुत  होशियार थी
सब जगह वाहवाही  थी
हर जगह अव्वल
हर जगह  प्रथम
परिवार  में  भी मान
उसके विपरीत
मैं  बहुत  स्लो  , धीमी
कछुए और खरगोश  की  कहानी की तरह
उसे  अभिमान था
गर्व  था
अपनी काबिलियत  पर
लगता था
कुछ  भी  असंभव नहीं 
यही वह मार खा गई
सोचा सब फतह कर लूंगी
धैर्य  नहीं  था
मैं  चलती गई
अपनी मंजिल  पाती  गई
धीरे-धीरे  ही सही मुकाम हासिल  कर ही लिया
आज वह जहाँ  थी वही है
हम सीढी  पार करते - करते  उससे बडे ओहदे पर पहुंचे
आज मैं  उसकी बाॅस वह मेरी  मातहत
वह जल्द पहुँच वही रह  गई
मैं  देर से पहुँच उससे ऊपर हो गई ।

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