कभी बढता कभी घटता
कभी आधा कभी पूरा
कभी गोल कभी तिहाई कभी चौथाई
इंच इंच घटता कभी बढता
कभी दाग तो कभी साफ
कभी चमकीला तो कभी धुंधला
कभी बादलों के नीचे तो कभी ऊपर
यह लुकाछिपी का खेल चलता रहता
यह अक्सर होता है
यह चांद जो है हमारा
सबसे प्यारा सबसे न्यारा
अजीज है दिल के करीब है
जैसा भी दिखता हर रूप भाता
यह जिंदगी हमारी जो है
वह भी तो हमें प्यारी है
उतार - चढ़ाव
सुख - दुख
आशा- निराशा
गिरना - उठना
टूटना - सहेजना
न जाने कितनी भावनाओं के भंवर में
डूबती - उतराती
गोते खाती
गुजरती जाती
गतिशील है उसी चाँद की भाँति ।
चांद की पूजा होती है अवसर पर
जिंदगी को भी सम्मान मिलता है
प्यार और अधिकार मिलता है
जीने के बहाने तो बहुत है
बस जीना आना चाहिए
जो भी है उसे स्वीकार करना आना चाहिए।
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