गाडी चल रही है
अनवरत दौड़ रही है
मन में विचार भी उसी गति से चल रहे हैं
बीच में कभी - कभी तंद्रा भंग हो जाती है
जब चायवाला आवाज लगाता है
चायययय चायययययय
एक क्षण देखती हूँ
फिर विचारों में मग्न
न जाने कहाँ- कहाँ से
न जाने किस रूप में
कभी अच्छा कभी बुरा
कभी आलोचनात्मक
आदत हो गई है
हर चीज का चीर-फाड़ करना
मन शांत रहने ही नहीं देता
काबू करके रखना चाहिए
पर होता नहीं है
हम परेशान रहते हैं
उन बातों से
जो आज के समय में कुछ मायने नहीं रखते
बीती बातों की बखिया उघड़ने से क्या हासिल
गाडी तो पहुँच ही जाएंगी
अपने ग॔तव्य पर
पर विचार तो नहीं
उसका तो ओर छोर ही नहीं।
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Thursday, 22 July 2021
मन का छोर
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