Monday, 23 August 2021

अब बुद्ध बन जाना है

आज लगता है
मैं बुद्ध बन जाऊं
सब छोड़कर 
माया मोह से मुक्त होकर
एकांत में रम जाऊँ
भागकर तो जा नहीं सकती
उनकी तरह किसी बोधि वृक्ष के नीचे
आधी रात को
घर में ही रहूँ
पर सबसे निर्लिप्त रहूँ
बहुत हो चुका सब
जिम्मेदारियां निभाते  - निभाते जिंदगी  थक गई
कभी कोई रूठा
कभी कोई क्रोधित हुआ
कभी किसी ने तोहमत लगाई
कभी किसी ने अपमानित किया
सब झेलते रहे
मान मनोवव्वल  करते रहें
तब भी कोई खुश नहीं रहा
कुछ न कुछ कमियां निकालते ही रहें
परिपूर्ण तो कोई  भी नहीं
वे भी नहीं
फिर हममें ही दोष ढूंढने की  आदत पड गई लोगों को
अगर ढूंढने चलोगे खामियां
तो एक क्या हजार नजर आएंगी
हममें भी तुममें भी
अब नहीं करना है यह सब
न कुछ सोचना है
बस बाकी जो जिंदगी बची है
उसमें बुद्ध बन जाना है ।

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