सुबह- सुबह कुनकुनी धूप
अच्छा लगता है
उसमें बैठना
धीरे-धीरे वह प्रखर
तब सहना मुश्किल
वह रास नहीं आता
संझा का इंतजार
यह ताप सहन नहीं
संध्या का दिल से स्वागत
यह तपता नहीं है
सुकून देता है
रात्रि का संदेश लेकर आता है
ऐसे ही जीवनयात्रा भी
एक समय हम खिलते हैं
एक समय हम कार्यरत होते हैं
एक समय हम आराम चाहते हैं
अब खिलना भी नहीं है
तपना भी नहीं है
वह सब संह्य नहीं
हर किसी का वक्त
हर किसी की सीमा
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