Friday, 17 September 2021

कल को कौन याद रखता है

तुमने किया ही क्या है
तुम्हें आता ही क्या है
तुम्हारे बाप ने दिया ही क्या है
न कोई सहुर न रंग
सांवर, छोट , मोट ,लडबक

सही ही कहा
कहने वाले नो
कुछ अब रहे नहीं
कुछ दूर जा बसे
पर वह जो दुरियां थी
वह खतम नहीं हुई
कैसे खत्म होती

बातें  नहीं भूलती
यादें भी ताजा रहती है
जबकि पता है
इससे कुछ हासिल नहीं होने वाला
जो बीत गई सो बात गई

वास्तव में ऐसा होता नहीं
कहना आसान है
जिस पर बीती वहीं जानता है
अच्छा था
कुछ  नहीं आता था
न चालाकी थी न होशियारी
न छल न कपट
तभी तो घर चला
चालाकी होती तब केवल अपना सोचता
ताउम्र रिश्ता नहीं निभाता
वह भी बिना किसी लालच और स्वार्थ के
फर्ज निभाते - निभाते
न जाने क्या - क्या खो दिया

जीवन के अमूल्य क्षण
पहनने - ओढने और घूमने के दिन
निश्चिंत रहने के दिन
बहुत कुछ चुकाया है
कोई सहुर नहीं
फिर भी स्वयं को संभाला है
अपने बच्चों की परवरिश
पढाना - लिखाना
नौकरी  - घर संभालना
सब अपने दम पर किया है
नहीं किसी का एहसान
कि किसी अपने ने हमारे लिए भी कुछ किया है

कोई समझे या न समझे
ऊपरवाला तो समझता है
हमने न जाने क्या - क्या मूल्य चुकाया है
अच्छा लगता है
नई पीढ़ी को देख
जो बस अपने बारे में सोचते हैं
अपने हक और अधिकार के प्रति सचेत रहते हैं
कर्तव्यों और फर्ज की बलि क्यों चढे
कौन याद रखता है
आपको और आपके त्याग को
जो सामने हैं
वहीं दिखता है
और तो बीता कल है
कल को कौन याद रखता है ।

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