आज बहुत अरसे बाद इस जगह पर आई थी
गाडी जब ट्रेफिक में रूकी
यहाँ- वहाँ नजर डाली
बचपन की यादें ताजा हो गईं
यह केवल एक निर्जीव सडक नहीं है
जीवन इससे जुड़ा हुआ है
यह जगह हैं वालकेश्वर
जहाँ की सडके कभी पानी से धोयी जाती थी
चौपाटी से शुरू होता हुआ
बाणगंगा पर खत्म होता
बाबुलनाथ मंदिर से लेकर हैंगिन गार्डन तक
वह बुढिया का जूता वह हरे - भरे घास से बने जानवर
इसी रास्ते में व्हाइट हाऊस
गवर्नर गेट और तीन बत्ती
सारे नेताओं की गाडियाँ यही से गुजरती थी
मुख्यमंत्री निवास वर्षा भी इसी रूट पर
इंदिरा जी को देखने के लिए सडक पर खडे रहते थे
वे खुली गाडी में खडी होकर हाथ हिलाते हुए जाती थी
आज तो नेताओं को देख ही नहीं सकते ऐसे
इतनी सुरक्षा कवच के घेरे में
इसी सडक पर चांद पर पहुँचने वाले नील आर्मस्ट्रॉन्ग और उनके साथियों को देखा था
श्राद्ध के अंतिम दिन बाल छिलाए हुए लोगों का रेला बाणगंगा से स्टेशन की तरफ जाते देखा था
फिल्मी हस्तियां भी इसमें शामिल थी
जैकी श्राफ से लेकर अंजू मंहेद्रू तक
चंदूलाल हलवाई वाले को कौन नहीं जानता
कांउसलेट के बंगले से अंदर का जंगल का रास्ता जो राज भवन पर निकलता है
स्कूल जाते समय न जाने कितने बंदर बैठे रहते थे
सांप की केंचुली पडी होती तो
लहराते समुंदर के साथ अनगिनत घटनाएं
हाजी मस्तान से लेकर सट्टा किंग तक
नाना पालखीवाला जैसे जज और पटेल - त्रिवेदी जैसे नेता
स्मगलिंग से लेकर सुसाइट तक
सब साक्षी रहे हैं
डबल डेकर की बस
बस में हो हल्ला करना
कंडक्टर और यात्रियों की डांट खाना
सबसे बडी स्ट्राइक के समय लिफ्ट मांगना
बांगला देश की लडाई के समय ब्लैक आउट और बम छूटते हुए दिखना
सुबह उन खाली कारतूस का मिलना
म्युनिसिपल स्कूल में पढना भी साधारण बात थी
कुछेक प्राइवेट और अंग्रेजी माध्यम थे
आज भी उस स्कूल के अध्यापक याद आते हैं
कांच की बोतल में दूध मिलना
उसको कोई गटागट गटक जाता तो कोई छूता भी नहीं
फिर मुंह पर लगी मलाई काटना
पैदल ही खाकी बस्ता टांग झुंड के साथ निकल पडना
यह सडक बहुत कुछ कहती है
बचपन इसने गढा है
इन्हीं सडकों पर उत्सवों पर परदे बांध दोनों तरफ से बैठ पिक्चर देखा है
रामलीला देखने के लिए चौपाटी तक दौड़ लगाई है
बिना पास के बांस को फांदते फांदते राम खंड तक पहुँच जाते थे
गोविन्दा के समय भटकी फोडते हुए और अंग्रेजों को फोटो लेते हुए देखा है
क्योंकि एक समय की सात और दस मंजिला ऊंची इमारतें यही थी
भूलेश्वर , नल बाजार पैदल ही जाते थे
पीठ पर सामान लादकर माँ के साथ लाते थे
ग्रांट रोड और चर्नी रोड से चलकर आते थे
तब आज का बान्द्रा और शांताक्रुज गाँव माना जाता था
हम सबसे पाॅश इलाके में रहते हैं
इसका गुमान था
सिग्नल खुल चुका था
गाडी रफ्तार में जा रही थी
उससे भी तेज रफ्तार यादों की थी ।
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