Sunday, 10 October 2021

जोर कितना बाजूओ में

मंजिल मिलती है बिना संघर्ष के कहीं नहीं
सोने को भी भट्टी में तपना पडता है
तब उसका रूप निखरता है
हीरे को भी घीसना पडता है
तब बहुमूल्य कहलाता है
बीज को भी मिट्टी में मिलना पडता है
तब जाकर विशालकाय वृक्ष बनता है
ईटों को भी अंधकार में नींव में जाना पडता है
तभी उस पर गगनचुम्बी ईमारत बनती है
ऐसे ही कुछ नहीं मिलता
महात्मा बनने के लिए भी बरसों तपस्या करनी पडती है
घर हो या जंगल
पशु-पक्षी हो या मानव
हर जीव को संघर्ष करना पडता है
शेर हिरण की ताक में रहता है
हिरण को भी पूरी ताकत से दौड़ लगाना पडता है
शिकारी , शेर की तलाश में
राजा हो या रंक
कमजोर हो या बलवान
जीवित रहने के लिए
असतित्व कायम रखने के लिए
संघर्ष करना ही है
हर बडी मछली , छोटी मछली को निगलने की फिराक में
यह वह जाल है जो सबको बांध रखा है
बावजूद अपने को बचाना भी है
जोर कितना बाजूओ में  
          यह हम ही जानते हैं

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