Sunday, 3 October 2021

मन की व्यथा मन ही राखो कोय

सही है भाई
मन पर बोझ हो तो वह उतार दो
किसी से मन की व्यथा कह दो
सुनने वाले से सब कह डालो
पर विश्वास किस पर करें

इस निष्ठुर दुनिया में कौन है अपना
कौन बेगाना
इसकी पहचान कैसे करें
कौन मित्र और कौन शत्रु
यह कैसे जाने

मन हल्का किया किसी के सामने
उसने रसास्वादन लिया
नमक मिर्च लगाकर स्वाद ले लेकर
न जाने कितनों को सुनाया

यह सब जानकर
लोगों की निगाहें पहचान कर
तबियत का क्या हाल होगा
वह तो वह ही जाने
हाँ जीना दुश्वार हो जाएगा

सबसे बडा रूपैया
यह भी सच है भैया
बंगला - फ्लैट  की जरूरत है
कम से कम रोने के लिए छत तो हैं
दूसरों से बचने के लिए आसरा तो है
बंद कमरे में ऑसू बहा लो
पर रोओ नहीं किसी के सामने

मन से मन और आदमी से आदमी
यह जोड़ना है
पर इस व्यस्तता और स्वार्थी जग में किसके पास समय है

होगा सो होगा
देखा जाएंगा
सब उस पर निर्भर है
उस खुदा पर
इंसान से डर लगता है
उससे नहीं
कितने दिन बचे हैं
जो हैं वह भी कट जाएगे
       रहिमन मन की व्यथा मन ही राखो कोय
       सुन इठलैहे या जग
            बाँट न लैहे कोय

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