Thursday, 14 October 2021

ज्यादा सोचें मत

सामने खुला आसमान हो
उसके नीचे पिंजरा हो
पेड पर फल लदे हो
हरा - भरा बगीचा हो
न उछल कूद कर सकते
न फल खा सकते
सब कुछ दिखते हुए भी
पहुँच से बाहर हो
तब कैसा महसूस होता है
उडने का मन है
फुदकने का मन है
लेकिन मजबूरी है
मन में जोश है
शरीर कमजोर है
पैरों की ताकत क्षीण हो चली है
शरीर कंपकंपाने  लगता है
सांस फूलने लगती है
पहाड़ चढना चाहते हैं
पर यहाँ सीढियां  चढना मुश्किल है
चारों धाम की यात्रा करना चाहते हैं
घूमना चाहते हैं
पर जब शक्ति थी
तब समय न था
पैसा न था
आज समय भी है
पैसा भी है
तब भी लाचार हैं
घर में कैद हैं
आज हालत उस चिड़िया जैसी हो गई है
जो पिंजरा खुला रहने पर भी उडने की हिम्मत नहीं कर पा रही
तब देर न करे
ज्यादा सोचें मत
समय में से समय निकाल कर भ्रमण कर ले
शायद बाद में ऐसा मौका मिले या न मिले
कुछ अपने लिए भी जी लो।

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