Friday, 5 November 2021

वह मिठास कहाँ

आज सुबह से आस लगाए बैठी थी
कोई आएगा मिलने
हर रोज तो नहीं सोचते हैं
हाँ त्योहार के समय जरूर याद आती है
मेहमान आए
अडोसी - पडोसी आए
एक - दूसरे को शुभेच्छा दे
हाॅल व्यवस्थित कर दिया
नए-नए परदे लगा दिए
कुछ सजावट भी कर दी
फूलों की पंखुड़ियो को कांच के बाउल में पानी रख सजा दिया
हर रोज तो घर की नाईटी ही या कोई पुराने हल्का कपडा पहन लिया
आज जरा ढंग के पहने
बालों पर भी कंघी कर ली
अन्यथा रोज तो शीशे में चेहरा भी नहीं देखते हैं
सब तैयार हो बैठी
ट्रे में मिठाई और ड्राइ फ्रूट भी रख दिए
गुझिया और चकली भी बना ली
घर को महकाना जो है पकवान से
घर तभी घर लगता है
अन्यथा बाजार में सब उपलब्ध है

एक समय था
जब सब पडोसी इस दिन एक - दूसरे के घर जरूर जाते थे
साल मुबारक कहने
बच्चों की धूम रहती थी
जवान भी टोलियाँ बनाकर आते थे
देखते- देखते सब चट हो जाता था
बादाम- काजू तो बचते ही नहीं थे
मुठ्ठी में भर लेते थे

अब तो कौन आ रहा है
व्हट्सप और फेसबुक तो है ही
उसी से शुभकामनाएं दे दी
पकवान का चित्र भी भेज दिया
सबेरे कौन उठेगा
जाने की जहमत कौन लेगा
बाहर वालों की बात तो छोड़ो
घर वालों को भी फुरसत नहीं
तब वह पहले वाली बात कहाँ रही
वह मिठास न अब संबंधों में रही
न मिठाई में न त्योहार में

No comments:

Post a Comment