मैं काॅलेज जाती थी। बस खचाखच भरी हुई रहती थी ।किसी तरह अंदर घुस जाती थी । बाद में धीरे-धीरे खाली भी होने लगती थी । यात्री उतरते तो सीट मिल ही जाती।एक दिन भीड़ कुछ बेहिसाब थी मुझे चक्कर जैसे आने लगा । एक तो बेहिसाब गर्मी ऊपर से भीड़।
अचानक एक युवक उठा और मुझे सीट ऑफर किया ।मेरी जान में जान आई। थैंक यू बोलकर बैठ गई । बैग में से पानी निकाल कर पिया। अब तो यह हर रोज का सिलसिला हो गया। मैं जैसे ही चढती मुझे सीट मिल जाती । कभी-कभी कोई सहेली साथ रहती तो छेड़ती। तुझे तो सीट मिल ही जाएंगी , चिंता मत कर ।
कभी-कभी उसको मेरे पास भी बाद में सीट मिल जाती ।हम एक - दूसरे को देख मुस्कुरा उठते । अब नाम भी पता चल गया था । राबर्ट नाम था ।नाम से ही पता चलता है क्रिश्चियन है।वह किसी बैंक में काम करता था ।किसी दूसरे शहर का ।
कभी-कभी मैं अपने टिफिन में कुछ खास लाती तो ऑफर करती ।उसे अच्छा लगता था ।धीरे-धीरे मैं भी विशेष टिफिन बनाने लगी । अलग-अलग वैरायिटी रहती ।वह होटल में खाना खाता था इसलिए घर का उसे भाता था ।
कुछ दिन बाद काॅलेज की छुट्टी हो गई। ऐसे भी यह मेरा आखिरी साल था । कभी-कभी उसकी याद आ जाती थी।
इसी बीच मेरा ब्याह तय हो गया ।
छुट्टी खत्म होने के बाद रिजल्ट के बारे में पता लगाने के लिए मैं काॅलेज गई । उससे मुलाकात हुई उसी बस में। मैंने बैग से मिठाई निकाला और उसे ऑफर किया उसने पूछा किस खुशी में। मैंने कारण बताया तो बढे हुए हाथ वापस खींच लिया । मैं मिठाई नहीं खाता , मुझे एलर्जी है । बात आई-गई हो गई। वह कहाँ और मैं कहाँ।
पति की ट्रांसफर वाली नौकरी थी । हमने शहर में एक जमीन ले रखी थी कि रिटायरमेंट के बाद यही घर बनवाया जाएंगा और आराम से एक जगह रहा जाएंगा
घर का गृहप्रवेश था । सभी जान - पहचान और नाते - रिश्तेदारों को बुलाया था ।बहू - बेटे , बेटी - दामाद, नाती - पोतों से भरा घर था ।पति ने कुछ पास - पडोस वालों को भी बुलाया था ।
पूजा थी उसके समाप्त होने के बाद सब हाॅल में बैठे थे । उनके नाश्ता - पानी का इंतजाम। पति देव चिल्ला रहे थे कितनी देर लगेंगी।
मैंने एक ट्रे में मिठाई और नमकीन डाला और चाय बनाने को कह खुद आ गई। सबको मिठाई ऑफर कर रही थी कि अचानक एक बढा हुआ हाथ पीछे चला गया ।मुझे मिठाई से एलर्जी है । यह वाक्य जाना - पहचाना लगा ध्यान से देखा तब सब माजरा समझ आ गया ।
वे महाशय धीरे से सोफे से उठे और कहा
मैं जा रहा हूँ देर हो रही है।
वे तो चले गए पर वह ऑखे अब भी नहीं भूलती ।उम्र के इस पड़ाव पर और इस तरह भेंट होगी यह तो नहीं सोचा था ।
अरे क्या सोच रही हो । जरा ट्रे इस तरफ भी करो ।
लोग हंसी - मजाक कर रहे थे । मिठाई और नमकीन खा रहे थे पर मेरे जेहन में तो एक ही वाक्य गूंज रहा था
मुझे मिठाई से एलर्जी है ।
Hindi Kavita, Kavita, Poem, Poems in Hindi, Hindi Articles, Latest News, News Articles in Hindi, poems,hindi poems,hindi likhavat,hindi kavita,hindi hasya kavita,hindi sher,chunav,politics,political vyangya,hindi blogs,hindi kavita blog
Monday, 6 December 2021
मुझे मिठाई से एलर्जी है
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
No comments:
Post a Comment