तबादला होता रहा
एक शहर से दूसरे शहर
एक जगह से दूसरी जगह
एक ही नौकरी में न जाने कितने तबादले
वह तो याद नहीं है
पर जो लोग मिले थे
सुख दुख के साथी और हमदर्द बने थे
वे याद हैं
वे कोई अपने भी न थे
लेकिन कुछ अपनों से बढकर थे
आज भी उनकी याद कभी कभार जब आ जाती है
मुख पर हंसी और ऑखों के कोरों में पानी भर आता है
किराये का घर या सरकारी क्वार्टर छूट जाता है
छूटता क्या है छोड़ना पडता है
कुछ सामान भी वहीं छूट जाते हैं
लगता है कि इनको ले जाने का कोई मतलब नहीं
वहाँ जाकर दूसरा खरीद लेंगे
फालतू का भार उठाना
यादें नहीं छूटती
वे साथ ही चली आती है
जेहन में रच - बस जाती है
वह चाची वह काकी
वह गुड्डू की अम्मा
वह गुडिया की दादी
वह दीदी वह प्यारी सी सखी
वह छोटी सी नन्ही मुन्नी
वह नौकर हीरालाल
वह बंबू की गाय
यह सब कहाँ भूले हम
माँ जैसा प्यार
सखी जैसा अपनापन
गौ माता का दूध
नौकर का हर दम हाजिर रहना
जिंदगी इनके कारण अंजान जगह भी आसान
वे इतनी आसानी से तो नहीं भुलाएँ जा सकते ।
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