जीवन बहुत बडा है
जीवन बहुत छोटा है
आज तक यह समझ नहीं आया
कि असलियत क्या है
जब जीवन भार लगता है
जब कोई उद्देश्य न हो
जब पीडा युक्त हो
जब असह्य हो
जब अभाव हो
तब लगता है
यह कब खत्म हो
कब तक जीवन नैया को इस तरह खेते रहेंगे
कब तक यह मझधार में फंसी रहेंगी
जब जीवन में हो सुख ही सुख
न कोई अभाव न दुख
तब जीवन छोटा लगता है
मन करता है
यह खूब लंबा हो
अभी तो कुछ देखा ही नहीं
जीवन जिया ही नहीं
यह भाग्य निर्धारित करता है
हम कौन सा जीवन चाहते हैं
कैसा चाहते हैं
वैसे भी जीवन हमारे हाथ में नहीं
जब जीना चाहते हैं
तब मुठ्ठी से फिसला जाता है
जो नहीं जीना चाहता है
उस पर सालों साल थोपा हुआ रहता है
No comments:
Post a Comment