Sunday, 5 June 2022

ओ मेरी प्यारी सेवपुरी

ओ मेरी प्यारी सेवपूरी
तेरे बिन सब अधूरी
तेरी वह खट्टी मीठी चटनी
ऊपर से एक एक्स्ट्रा पुरी
उसके बाद  सेव मुरमुरा
सी सी करना
पर पानी नहीं पीना
कुछ समय तो जीभ पर स्वाद रहे
संझा होते ही गैलरी से ऑखे सडक पर
भेल वाले भैया की बाट जोहते
जैसे ही दिखा
बांछे खिल जाती
लगता जन्नत मिल गई
पैसे बचाकर रखते 
दिन भर की कमाई
तब दस रूपये
वह भी भारी
दो दिन के बाद नंबर आता
छुपते छुपाते जाती
पहले भाई बहनों से
अब अपने ही बच्चों से
क्योंकि उतने पैसे नहीं होते
खाकर जब धीरे से घर में कदम रखती
तब पापा बाबूजी हंसकर बोलते
पहली बार ऐसी माँ को देखा
जो बच्चों से छुपाकर खाती है
माँ तो मुख का निवाला भी बच्चों को दे देते हैं
हंसकर कहती 
निवाला दे दूंगी
पर सेवपूरी और भेलपुरी नहीं
इन लोगों ने तो बना दिया था
मुझे चटोरी
समय गुजरा
उम्र बढी
पेट का अपना अलग दुखडा
आज पैसा भी है
पर वह बात नहीं
जी मचलता है
पन्द्रह दिन या महीने में फिर खा लेते हैं
अब भी छुपकर
तब पैसे के अभाव में
अब स्वास्थ्य ,डाक्टर और घरवालों के डर से
चाहे जो भी हो
तू मुझसे है हमेशा जुड़ी
आज तेरी याद आई बडी
जज्बातो को लिख उठी
ओ मेरी प्यारी सेवपूरी
तेरे बिना सब अधूरी

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