कृष्ण के दिल की रानी
मीरा भी तो कृष्ण दीवानी
महलों को छोड़ चली
मंदिर मंदिर घूमी
अपने प्रिय को पाने
राधा ने तो बृजभूमी में रास रचाया
मीरा ने तो मरुभूमि में फूल खिलाया
राधा रही गोकुल में कृष्ण की आस लगाए
मीरा जग - परिवार छोड़ भटकी यहाँ वहाँ
कब , कहाँ न जाने उनके कृष्ण मिल जाएं
प्रेम राधा से कृष्ण ने किया था
कृष्ण से प्रेम मीरा ने किया था
वह द्वापर युग था
साक्षात अवतरण था
मीरा तो उस युग की थी
जहाँ कृष्ण शरीर रूप में थे ही नहीं
बिना देखे अपने प्रिय को अपने आराध्य को
इतना प्रेम
इतना विश्वास
इतनी भक्ति
बडे बडे अवरोध आए
सब अवरोध पार कर गई
हर लांछन सह गई
साधु संतों के साथ घूमती रही
वीणा की धुन छेड़ती रही
कृष्ण भक्ति में रम गई
तभी तो मीरा , संत मीराबाई बन गई
आज भी जब गूंजता है
मैं तो प्रेम दीवानी
मेरा दर्द न जाने कोय
तब मीराबाई समक्ष आ जाती है
प्रेम करें तो मीरा सा
भक्ति करें सो मीरा सा ।
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