Friday, 28 October 2022

सब हुआ पराया

पिता से पीहर
माँ से मायका
यह हो तो बदल जाता जीवन का जायका 
इनके बिना तो सब गडबडाता 
बस सब यादों में समाता
अब तो बस याद ही बसी है
वो रूठना - मनाना 
वो झगड़ना - चिल्लाना 
वो हंसना - खिलखिलाना 
वो मौज- मस्ती और शरारते 
सब है याद बहुत आते 
वे क्या गए 
अपने साथ वह प्यारा सा जहां भी ले गए 
बस नाम छोड़ गए 
घर छोड़ गए
उनके बिना तो घरौंदा भी सूना 
जहाँ वे नहीं वहाँ नहीं मन लगता
कितना भी अपनापन हो तब भी लगता पराया 
घर भले हो पर अपना है
यह बात हमारा मन नहीं मानता। 

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