कोई कुछ भी कह सकता है
झूठ मूठ का आरोप लगा सकता है
शांत रहें और ठंडे
तब विचार भी आएंगे
लोहा को जब गरम करते हैं
पीटते हैं
तब उसे किसी भी आकार में ढाल सकते हैं
आप को बदलना नहीं है
न उत्तेजित होना है
मजबूती से अपना काम करना है
निश्चय पर अडिग रहना है
उकसाने वाले बहुतेरे
आपका अपना वजूद है
आप धातु नहीं है
कि किसी भी आकार में ढल जाएं
नम्र रहें पर गर्म नहीं ।
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