Saturday, 5 November 2022

ऐ चांद

चांद तुम रोज मेरे छत से गुजरते हो
कभी न कभी दिख ही जाते हो
चांदनी रोशनी से नहाए हुए
तारों के साथ चलते हुए
तुम कितने हसीन लगते हो
कभी ग्रहण,  कभी बादल कभी तूफान 
सबका सामना करते हो
झुरमुट से झांक ही लेते हो
कभी पूरे शवाब पर
कभी आधा - अधूरा 
कभी तो केवल एक हिस्सा ही
अमावस की रात भी तो आती है
पूर्णिमा में फिर उसी रूप में 
सफर जारी रहता है
कुछ सीखना हो तो तुमसे सीखे
कोई भी समय हो 
तब भी मुस्कराते ही रहते हो
जितना जगमगा सकते हो जगमगाते रहते हो
शीतल प्रकाश और मधुर चांदनी 
यह हमेशा देते हो
पूरा हो या अधूरा
अपना फर्ज मनोयोग से निभाते हो ।

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