कभी स्थिर नहीं रहता
हमेशा चलायमान
इस मन में न जाने क्या-क्या समाया
इसका इलाका भी विस्तृत
एक या दो दिन नहीं
महीनों- बरसों की बातें इसमें समाई
अच्छी भी बुरी भी
खुशी वाली भी दुखी वाली भी
कचरा भी भरा है व्यंग्य वाली का
समय चला जाता है
हम उस कूडे कचरे विचार को संजोये रहते हैं
अच्छी बातें कम याद
अब उसमें प्रकाश फैलाना है
या कचरे वाला अंधेरा
यह तो व्यक्ति पर निर्भर
ढोये या छोड़े
कुढता रहें या माफ करें
मन तो कोमल भी है
कितना सहेगा
मत तकलीफ दो
अच्छा अच्छा सोचो
फालतू और बेकार का छोडो
मन को भी खिलने दो
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