लोहे को भी जंग लग जाती है
पत्थर भी घिस जाता है
हरे भरे पेड़ भी ठूंठ हो जाते हैं
मजबूत से दीवारों में भी दरार पड़ जाती है
कभी के शानदार महल खंडहर में तबदील
कभी का रौनकदार आज वीरान
परिवर्तन तो होना ही है
सदा एक सा नहीं रहना है
यह तो सदियों से होता आया है
हम जो पहले थे आज वह नहीं है
सदा से तो ऐसे नहीं थे
जो हमें जानता होगा
जो हमें समझता होगा
वह ही हमें समझ पाएंगा
बालों में सफेदी ऐसे ही नहीं आती
दांतों का टूटना ऐसे ही नहीं होता
दर्द शरीर में ऐसे ही नहीं होता
ऑखों में ऑसू भी ऐसे ही नहीं आते
मन उदास ऐसे ही नहीं होता
जिस जिंदगी से हमें बहुत प्यार होता है
वह एक दिन भार ऐसे ही नहीं लगने लगती
बहुत कुछ टूटता है
बहुत कुछ दरकता है
वह भी एक दिन में नहीं
सालोसाल में
कब तक मजबूत रहेंगे
कब तक छत हमारा भार ढोती रहेंगी
एक समय के बाद तो सब ही को खत्म होना है ।
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