जिसका ऊपरी कवर देख लोग आकर्षित होते हैं
कैसी डिजाइन कैसा रंग कैसा टाइटल
कुछ लोग खोल कर देखना भी नहीं चाहते
कुछ ऐसे भी होते हैं
जो मुखपृष्ठ पलट कर परिचय देख लेते हैं
कुछ टिप्पणियां पढ लेते हैं
पूरा पढने की जहमत कौन उठाएं
कमोबेश कुछ ही होते हैं
जो पूरी किताब पढते है
फिर चलता है
आलोचना- समालोचना का दौर
कुछ ही पूर्ण रूप से समझ पाते हैं
दूसरे की जिंदगी को समझना इतना आसान नहीं
हाँ राय बनाया जा सकता है
वह भी आधे - अधूरे जानकारी पर
राय बनाना आसान है समझना मुश्किल
तब जब तक पूरी किताब न पढी जाएं
तब तक उस पर कुछ कमेंट भी न हो
कहा जाता है जिंदगी एक खुली किताब है
सही भी है
पर पढने वाला पूरा पढे , समझे
तभी मर्म समझ पाएंगा
उसका मूल्यांकन कर पाएंगा ।
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