Monday, 24 April 2023

माँ बिना सब बेमानी

माँ होती तो ये होता 
माँ होती तो वो होता 
मैं यह कहती
मैं वह कहती 
जब मन होता रूठ जाती
जब मन होता झगड़ लेती
जब मन होता बच्ची बन जाती 
जब मन होता बडी बन डांट लगाती 
अपनी बात मनवाती 
ढेरों शिकवा शिकायत करती
नाज नखरे करती
मनुहार करवाती 
यह अच्छा नहीं वह अच्छा नहीं 
उनके खाने में नुक्स निकालती
पर दूसरे के खाने में स्वाद भी नहीं मिलता
वह अच्छी नहीं है 
मुझे यह नहीं करने देती 
वह नहीं करने देती 
पर उसके सिवा दुनिया में कोई अच्छा ही नहीं 
मेरी माँ के बराबर कोई नहीं 
उसकी जगह तो भगवान को भी न दूं
उसी से जन्नत है
उसी से रौनक है
जिंदगी में मिठास है 
हक भी उसका ज्यादा है
नौ महीने तो उसके गर्भ में ही दुनिया है
सब से परिचय तो बाद में 
क्या नहीं कर सकती वह 
यह सोच बच्चों की
सुपर वुमेन है वह 
जब वह ही नहीं तब कुछ नहीं 
मान करने वाली ही नहीं रही 
तब मान कोई मायने नहीं 
मान तो माँ वाला हो
निस्वार्थ हो
प्रेम और स्नेह से लबरेज हो
दिखावटी न हो
ऐसा तो माँ से ही संभव है
जब वह ही नहीं 
तब सब बेमानी ।

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