माँ होती तो वो होता
मैं यह कहती
मैं वह कहती
जब मन होता रूठ जाती
जब मन होता झगड़ लेती
जब मन होता बच्ची बन जाती
जब मन होता बडी बन डांट लगाती
अपनी बात मनवाती
ढेरों शिकवा शिकायत करती
नाज नखरे करती
मनुहार करवाती
यह अच्छा नहीं वह अच्छा नहीं
उनके खाने में नुक्स निकालती
पर दूसरे के खाने में स्वाद भी नहीं मिलता
वह अच्छी नहीं है
मुझे यह नहीं करने देती
वह नहीं करने देती
पर उसके सिवा दुनिया में कोई अच्छा ही नहीं
मेरी माँ के बराबर कोई नहीं
उसकी जगह तो भगवान को भी न दूं
उसी से जन्नत है
उसी से रौनक है
जिंदगी में मिठास है
हक भी उसका ज्यादा है
नौ महीने तो उसके गर्भ में ही दुनिया है
सब से परिचय तो बाद में
क्या नहीं कर सकती वह
यह सोच बच्चों की
सुपर वुमेन है वह
जब वह ही नहीं तब कुछ नहीं
मान करने वाली ही नहीं रही
तब मान कोई मायने नहीं
मान तो माँ वाला हो
निस्वार्थ हो
प्रेम और स्नेह से लबरेज हो
दिखावटी न हो
ऐसा तो माँ से ही संभव है
जब वह ही नहीं
तब सब बेमानी ।
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