यह प्रतिज्ञा महामहिम भीष्म ने की थी
वे वासुदेव जो प्रतिज्ञा में बंधे थे
महाभारत में शस्त्र नहीं उठाऊगा
उन्होंने उठाया
कारण अपने भक्त का मान रखना था
वे ईश्वर थे
सुदर्शन चक्रधारी थे
फिर भी
वही भीष्म थे
जो आजीवन प्रतिज्ञा में बंधे रहें
अन्याय करते रहें
देखते भी रहें
काशी नरेश की कन्याओं के साथ वह अन्याय ही था
द्रौपदी चीर-हरण में मुक दर्शक बने रहना
अंधे धृतराष्ट्र का साथ देना
हस्तिनापुर के प्रति कर्तव्य निभाते निभाते वे भूल गए
उस भीष्म प्रतिज्ञा का क्या फायदा
जो अधर्म का साथ दे रहा था
प्रतिज्ञा में तो केशव भी बंधे थे
भीष्म भी बंधे थे
लेकिन एक ने तोड़ा
एक तोड ही नहीं पाया
शरशैय्या पर लेट कर देखते रहें
शायद यह भी सोच रहे होंगे
कहीं यह मेरे ही कर्मों का फल तो नहीं
महाभारत के युद्ध का कारण मैं ही तो नहीं
प्रतिज्ञा ऐसी भी न हो
जो विनाश का कारण हो ।
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