साहित्य में रूचि रखने वाले अंजान नहीं
कफन हो निर्मला हो बडे भाई साहब हो या ईदगाह हो
जहाँ जीते जी नया कपडा नसीब नहीं वहाँ मरने पर नया कफन उढाया जाता है
जहाँ जीते जी पेट भर अच्छा खाना मयस्सर नहीं
उसी के नाम पर तेरहवीं का भोज कराया जाता है और लोग छक कर खाते भी हैं
लमही गाँव का मास्टर उपन्यास सम्राट ऐसे ही नहीं बना
उन्होंने अपने युग को जीया है
उनके पात्र समाज का प्रतिनिधित्व करते है
घीसु और माधव , बुधिया आज भी समाज में मौजूद हैं
विकास भले हुआ हो तब भी
सवा सेर गेहूं में साहूकार के कर्ज से लदा हुआ जिसमें उसकी अगली पीढ़ी भी कर्ज चुकाएगी
उन्होंने केवल कहानियां लिखी नहीं अपने जीवन में भी उतारा
विधवा शिवरानी देवी से विवाह किया
हर त्रासदी को उन्होंने झेला था या बहुत नजदीक से देखा था
वह फिर गरीबी हो या और कुछ
उनके पात्र हममें से कोई लगता है
वे समुद्र किनारे आलीशान फ्लैट में बैठकर रचना करने वाले रचयिता नहीं
ढिबरी के प्रकाश में बैठकर रचना करने वाले
गाँव- देहात में रहने वाले
गोदान को पढ लो तो हर ग्रामीण की पीडा समझ आ जाएंगी
जीवन का सब संचित गोदान में उतार दिया है
तब वह शहर की तरफ पलायन हो
बेमेल विवाह हो
अपने उम्र के व्यक्ति से मजबूरी में बेटी का विवाह करने पर होरी का धनिया को कहना
मर्द तो साठे पर पाठे होते हैं
अगर भारत को पढना हो तो मुंशी प्रेमचंद को पढ लीजिए।
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