एक मंत्र मिल गया है
कुछ भी हो बस चुप रहो
बोलो मत ना विरोध करों
हंसते - मुस्कराते रहो
अपमान सहते रहो
दबते रहो , डरते रहो
अपनी बात को रखो मत
अगर रखो तो सोच समझ कर
कब क्या मोड़ ले लेगा
यह बातचीत
उसका ठिकाना नहीं
कब तोहमत लग जाएं
इससे अच्छा तो चुप रहो
किसी पर कोई अधिकार नहीं
बस अपनी जबान और मन पर अधिकार
तो उसको बंद कर दो
गांधी जी के तीन बंदर की तरह
कान - ऑख - मुख तीनों मूंद लो
सुकून की जिंदगी जीओ
न कहना न सुनना
अपने में रहों
मन की बात मन में रखो
भैंस के आगे बीन बजाएं
भैंस खडी पगुराए
जो जान नही सकते , समझ नही सकते
ऐसे हदय हीन पत्थर दिल के सामने दिल खोलना तो दिल का भी अपमान करना है ।
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