Sunday, 22 October 2023

बेचारी प्रजा

किस्मत बंद हुई चुनाव के पिटारे में
साम ,दाम ,दंड ,भेद सारे नुस्ख़े आजमाए गए
अब पिटारा खुलने का इंतजार
जैसे ही पिटारा खुला
किस्मत चमकी
रातोरात ऐश्वर्य और संपत्ति का डेरा
जनता का क्या
हाथ जोड़ लिया
दो पेग पिला दिया
कुछ पैसे बांट दिया
कुछ रोटी का टुकड़ा फेंक दिया
कुछ बात बना दी
कुछ लंबी चौड़ी हांक दी
कुछ झूठ बोल दिया
कुछ झूठे वादे कर दिया
वह पिघल गई
झांसे में आ गई
वह जहाँ थी वही है
हम उसके बल पर बन बैठे शहंशाह
पहले हमने हाथ जोड़ा
अब वह जोड़ेंगे 
पहले हम घूमे गली कूचे
अब वह घूमेगी हमारे आस-पास
हमारे दर्शन भी दुर्लभ
हम रहेंगे सुरक्षा के घेरे में
वह रहेगी ताकती दूर से हमें
उसकी परवाह किसे
हमने तो अपना क्या अपने पूरे खानदान का वर्तमान एवं भविष्य दोनों को संवार दिया
जमीन से उठाकर आसमान पर बिठा दिया
चुनाव तो हो चुके 
जनता की ऐसी की तैसी
अब पांच साल जम कर राज करेंगे
अगले चुनाव तक फिर कोई चारा फेंक देगे
शगूफा छोड़ देंगे
फिर अपनी बातों में ले लेंगे
ऐसे ही हम राजा बने रहेंगे
और वह बेचारी हमारी मायूस - लाचार प्रजा

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