Tuesday, 6 February 2024

मैंने बचपन को जी भर जीया

मैंने बचपन को जी भर जीया 
कोई मलाल नहीं 
जो मिला उसी में खुश रहें 
एक बडा - पाव और मस्का - पाव किसी जिज्जा- बर्गर से कम नहीं 
खिलौने न मिले महंगे महंगे कोई गम नहीं 
पीठ पर बस्ता लादे दौड़ लगाई
नहीं मंहगा बोतल से पानी एक अंजुरी ही काफी थी
किसी की खिड़की से टेलीविजन देखा
रास्ते पर लगे परदे पर सिनेमा देखा
नहीं मंहगे कपडे मिले दो जोड़ी में ही इतराए 
दीवाली पर मंहगे फटाके भले न फोडे माचीस की तीली से फुलझड़ी खूब जलाई
पतंग के साथ खूब दौड़ लगाई
उडाना न सही पकड़ने का मजा लिया
होली में मन भर गुलाल लगा शीशे के सामने अपने को बडे प्यार से निहारता
खाने की कोई फिकर नहीं 
दाल - भात को सुपड सुपड कर खाया 
चाय को फूंक मार मारकर पिया 
मैंने बचपन को जी भर जीया 
छुपाछुपी खेली कबड्डी में भी दो दो हाथ किए 
चवन्नी- अठन्नी में ही दिल बाग बाग होते 
हर मेहमान का इंतजार करते
नमस्ते और मुस्कान से स्वागत करते 
दोस्तों और सहेलियों के संग मटरगश्ती करते
किसी के डांटने और चिल्लाने पर छिप जाते डर से
पीछे खिलखिलाकर हंसते 
किसी का बुरा ना मानते 
चोट लगने पर रो कर ऑसू खुद ही पोछ लेते
घर पर खबर न लगते
खुद ही गिरते खुद ही उठते
इसी तरह बचपन गुजर गया
बहुत कुछ सिखा गया
मजबूत बना गया
लडने की ताकत दे गया
संघर्षों से लडना सिखा दिया
अभावों में भी जीना सिखा दिया
जैसे भी थे वह दिन तो सुहाने थे 
वह हमारा प्यारा बचपन था
जो नींव पडी तब अब भी बरकरार है
प्यार- स्नेह से लबरेज बचपन 
वह नहीं थे कोई सपने
बस जीवन का वह पल 
जो अब मिलना मुश्किल ।


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