बस एक ही सहारा है
तब भी क्यों दुविधा में रहता मन
क्यों देखता इधर-उधर
क्या विश्वास नहीं उस पर
जब वह चाहे तो फिर कोई क्या करें
सब पता है तब भी
मानव हैं ना हम
सोचना हमारी फितरत है
हाथ - पैर मारना हमारा स्वभाव है
होगा वही जो वह चाहें
हमारे चाहने और ना चाहने से कोई फर्क नहीं पडता
हम कभी तो द्रोपदी बन जाते कभी अर्जुन
अर्जुन की तरह समझ नहीं आता
द्रौपदी की तरह सब पर आस लगाएं
इसमें दोष है किसका
पत्ता भी नहीं हिलता जिनकी मर्जी से
यह पता है हमको भी सबको भी
ब्रह्माण्ड की शक्ति के आगे सब विवश
ऐसा नहीं होता तो रावण का राज चलता
दुर्योधन का व्यभिचार चलता
शकुनि की कुटिलता चलती
सब खतम हुए
छीनने चाहे तो एक झटके में छीन ले
देना चाहे तो सुदामा के जैसे दो लोक दे दे
अर्जुन का सारथी बन रथ हांक दे
सब पता है तब भी
कर्म का संदेश भी तो उन्हीं प्रभु का है
गीता का सार ही है कर्म
तब कर्म करो और सब उस पर छोड़ दें
फलदाता - न्यायकर्ता सब वही हैं
यह भी सबको पता है
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