मालूम है कमी मेरी मुझे
मैं कभी मजबूत थी ही नहीं
लोगों की बातों को दिल से लगा लेनी वाली
किसी को जवाब न दे पाने वाली
अल किस्म की आलसी
न कोई इच्छा न महत्वकांक्षा
जो मिला उसी में संतुष्ट
हर कदम पर समझौता
न कोई अभिमान न स्वाभिमान
रूदन और क्रोध मेरे शस्त्र
जिंदगी जीया नहीं घसीटा मैंने
आरामतलब तो थी ही
आराम मिला नहीं
जिंदगी ने कभी छोड़ा ही नहीं
अनिच्छा से ही सही काम तो किया
विश्वास नही होता अपने आप पर
ये ही तो सबसे भारी कमी मुझमें
अपने को कम ऑकना
आखिर किया तो मैंने ही
बिना किसी शिकवा - शिकायत के
आज भी मोम ही हूँ
जो जरा सी ऑच पर पिघल जाता है
साथ में उस पत्थर सी भी मजबूत हूँ
जो ठोकरों के बाद भी अपनी जगह से हिलता नहीं है
लोग यहाँ वहाँ से निकल जाते है छोड़ कर
मैं वही स्थिर हूँ
सब नजारा देख रही हूँ
उस जिंदगी को भी
जो धकियाते मुझे यहाँ तक ले आई
यह बात भी सही है
मजबूरी ने मुझे मजबूत बनाया।
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