Wednesday, 3 April 2024

यादों कीसंदूक

आज यादों की संदूकची खोली
कैमरे की तरह हर रील ऑखों के आगे घूमने लगी
वो लम्हें वो पल 
सब याद आने लगे
ना जाने कितनी प्यारी प्यारी तस्वीर संजो रखी है मन में 
लगा कि देखते ही रह जाऊं 
उन क्षणों में खो जाऊं 
बिना कारण के 
रूठना - मनाना  , रोना - हंसना , चिल्लाना - मुस्कराना 
हर बात में शिकवा - शिकायत 
क्या दौर था वह भी 
चलो कोई बात नहीं 
साथ भले ना हो याद तो है
उसी में झूम लेते हैं 
कहकहे लगा लेते हैं 
मन से तो नजदीक है
वही क्या कम है ।

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