जनता हो गई त्रस्त
दलबदलू है मस्त
आज इसमें कल उसमें
कुछ न कुछ तो मिल ही जाएंगा
इस रंग बदलती दुनिया में
हम क्यों न बदले
क्यों नैतिकता का चोला पहने रहें
दिखावा करने का जमाना नहीं रहा
अब अंदर - बाहर बस एक ही
सफेद कुर्ते- पैजामे छूट रहें
पोशाक भी बदल रही
सीधा - साधा का ढोंग बहुत हुआ
अब तो निशाना है सीधे कुर्सी पर
जहाँ कुर्सी वहाँ हम
हमारी मर्जी हम जो चाहे करें
जनता के सेवक है
दे रहे हैं ना फ्री में खाना
बस खाएं
चुपचाप पडी रहें
हम ऐश करेंगे और हमारी पीढ़िया भी
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