इनसे जुदा होना तो कभी हुआ नहीं
इन पर ही तो मैं खिला
फूल बनकर महका
रक्षा की मेरी इन काँटों ने
ये कांटे न होते तो मैं भी न होता
चुभोते रहें
महसूस कराते रहें
मुझे अपने को पहचानने में इनका हाथ
इनके संरक्षण में खिला
खुशी से लहलहाया
सबके मन को भाया
यह बस अपना कर्तव्य करते रहें
मैं आगे बढता रहा
कांटे बिना पुष्प कहाँ
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