Saturday, 22 June 2024

मजबूत बनना है मजबूर नहीं

हमने चलना शुरू ही किया था
लोगों ने रोकना शुरू कर दिया 
राह में रोड़े अटकाने लगे
रास्ता भी रोकने लगे 
हमने रास्ता बदल लिया 
चलना नहीं छोड़ा 
चलते रहे चलते रहे
हर राह की बाधा पार करते रहें 
यह सब सीखा है हमने प्रकृति माँ  से 
पतझड़ तो आते ही है 
लेकिन वह जीना नहीं छोड़ती 
हंसती - मुस्कराती रहती है
डोलती रहती है
झूमती रहती है
उसे पता है
वसंत भी आएगा 
यह वक्त भी बदलेगा 
यह एक जैसा नहीं रहता 
आज हरा - भरा कल झड़ा 
तब भी तनकर खड़ा रहा 
धूप की भट्टी में तपता रहा
ऑधी- तूफान को झेलता रहा
शीत में ठिठुरता रहा 
नहीं तब भी घबराया 
उसको पता है 
सूरज निकलेगा और अस्त भी होगा
अगले दिन फिर आएगा जोश से 
अंधेरा दूर जो करना है 
आना - जाना तो लगना ही है
जब तक जीवन है तब तक थपेडों सहना ही है 
मजबूत बनना है मजबूर नहीं 

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