भरत के प्रेम ने फिर अयोध्या पहुँचाया
पिता के प्रेम ने वनगमन कराया
मातृभूमि के प्रेम ने लंका विजय के पश्चात भी त्याग दिया
सखा सुग्रीव के प्रेम ने बालि वध कराया
शबरी के प्रेम ने जूठे बेर खिलाया
लखन के प्रेम ने खूब रुलाया
प्रजा प्रेम ने प्राण प्रिया का त्याग कराया
राम तो थे ही प्रेम से परिपूर्ण
हर दीन- दुखी को गले लगाया
माता कैकयी को भी कभी न कोसा
बाल्मीकि के राम
बाबा तुलसी के राम
कबीर के राम
हमारे सबके राम
राम जैसा तो बनना आसान नहीं
त्याग और क्षमा
वीरता और मर्यादा
दयालुता और समानता
कुछ तो सीखो राम से
मत भगवान बनो
इंसान बने रहो
बस इतना ही काफी है
राम नाम ही एक सहारा
नहीं कोई दूजा आधारा
प्रेम से बोलो
जय सिया राम जय सिया राम
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