Saturday, 9 November 2024

मैं और मेरा अस्तित्व

कोई मेरी जन्मदात्री 
मैं किसी की जन्मदात्री 
दोनों के ही प्रति फर्ज 
एक जीवन के प्रभात पर
दूसरा जीवन की संध्या पर
एक की मैं अंश
दूसरा मेरा अंश
इनमें कहीं न कहीं थोड़ा-बहुत मैं भी विद्यमान 
लेकिन मैं पूर्ण रुप से कहां हूँ 
यह समझ नहीं पाई 
कभी किसी का पूरा नहीं बन पाई 
न अपना और न किसी और का 
बनती ही कहाँ से 
स्वतंत्र ही नहीं जो बंधा है बंधनों से 
वह भी प्रेम के बंधन से 
उसे तोड़ भी नहीं सकती 
तोड़ना भी नहीं है 
यही तो जिंदगी है 
इसका आनंद सब नहीं समझ सकते 

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