Monday, 13 January 2025

मेरी जिंदगी से वार्तालाप

मैं रोती रही 
जिंदगी को बोझ मान जीती रही
सबके सामने गम का इजहार करती रही
कहती रही जिंदगी रुठी है मुझसे 
अचानक जिंदगी सामने आई
कहने लगी 
रुठी हो तो मनाओ मुझे
मैं तुम्हारी हूँ तो मनाना भी तुम्हें ही है
कोई बेगाना न आएगा 
अब तो मैं चली रुठ कर
मैंने पकड़ा उसको कस कर
नहीं मैं तुमको ऐसे नहीं जाने दूंगी 
वह मुस्कराई धीमे से 
मैं भी हंसी खिलखिला कर
कही कान में धीरे से 
ऐसे ही हंसती रहो जी भर कर
अच्छी लगती हो 
वादा करो मुझसे 
प्यार करो जी भर कर 
छोड़ो सब बेकार की बातें 
अपनी जिंदगी जीओ 
प्रपंच में क्यों पड़ना 
हर हाल में खुश रहना 

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