जिंदगी को बोझ मान जीती रही
सबके सामने गम का इजहार करती रही
कहती रही जिंदगी रुठी है मुझसे
अचानक जिंदगी सामने आई
कहने लगी
रुठी हो तो मनाओ मुझे
मैं तुम्हारी हूँ तो मनाना भी तुम्हें ही है
कोई बेगाना न आएगा
अब तो मैं चली रुठ कर
मैंने पकड़ा उसको कस कर
नहीं मैं तुमको ऐसे नहीं जाने दूंगी
वह मुस्कराई धीमे से
मैं भी हंसी खिलखिला कर
कही कान में धीरे से
ऐसे ही हंसती रहो जी भर कर
अच्छी लगती हो
वादा करो मुझसे
प्यार करो जी भर कर
छोड़ो सब बेकार की बातें
अपनी जिंदगी जीओ
प्रपंच में क्यों पड़ना
हर हाल में खुश रहना
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