Thursday, 13 February 2025

अब चक्रव्यूह में उलझना गंवारा नहीं

अब पीछे लौटने को जी नहीं चाहता
उन रास्तों पर चलना अब गंवारा नहीं
अब उन गलियों को पीछे मुड़कर देखने का जी नहीं करता
जिनसे जिंदगी होकर गुजरी है
हम छोड़ आए उन रास्तों को
जिस पर कभी हम चले थे 
ख्वाब देखे थे 
उन ख्वाबों को सच करने की कोशिश में न जाने क्या-कुछ छूट गया 
कितनी बार  जलालत सही
कितनी बार आत्मसम्मान की धज्जियाँ उड़ाई 
आत्मविश्वास आहत हुआ 
हंसने की वजह न होने पर भी हंसना पड़ा 
कितनी बार अपनी हंसी उड़ते देखी 
झूठ को सच मानना पड़ा 
बिना कारण भी दबना पड़ा 
गल्ती न होते हुए भी अपने को ही गलत बताना पड़ा 
जहाँ अपनी बात को रखने का हक नहीं मिला 
मन से न बात समझा पाए न भावना 
न किसी ने समझा 
दोष भी लिया 
माफी भी मांगा
लेकिन धारणा किसी की न बदली
हम चक्रव्यूह में उलझ कर रह गए 
बहुत कुछ पाने के चक्कर में बहुत कुछ खो बैठे 
अब किसी चक्रव्यूह में उलझने का मन नहीं 
अब पीछे मुड़कर देखना गंवारा नहीं
अब पीछे लौटने को जी नहीं चाहता 

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