Thursday, 6 February 2025

अकेलापन

पेड़ तो पेड़ ही था
वह अपने पर हमेशा इतराता था
उसके तने हमेशा फूलों - पत्तों और फलों से लदे रहते थे 
डालियां जब झूमती थी तो वह भी मुस्कराता था
किसी को तवज्जों नहीं देता था
अपने में ही मस्त रहता था
समय हमेशा एक सा नहीं रहता 
पत्तों ने भी रंग बदलना शुरु किया
उसको छोड़ने लगे 
पेड़ को तो आभास ही नहीं
ऐसा भी कुछ होगा 
सब धीरे - धीरे बिछुडने लगे 
उससे दूर जाते गए 
वह बस मजबूर हो देखता रहा
आँखों में आँसू भर सोचने लगा
वह भी क्या दिन थे 
एक साथ कितने अच्छे लगते थे 
वह किसी को जाने तो नहीं देना चाहता था
धीरे - धीरे सब चले गए 
वह अकेला खड़ा रह गया 

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