हमें जमीन पर चलने की आदत थी
पैर जमीन पर रखने से मैले हो जाने का डर नही था
राहें भी समतल नहीं थी
उबड़ खाबड़ और कंकड़ पत्थर बिछे थे
हमको उसकी भी आदत नहीं थी
फिर भी हम चले , चलते रहे
कंकरीली - पथरीली पर
उसे आसान बनाया
ऐसा नहीं कि पत्थर चुभे नहीं
पैर में छाले नहीं पड़े
आँख से ऑसू नहीं छलके
दर्द नहीं हुआ
सबको झेला पर रुके नहीं
बस चले और चलते रहे
उस मुकाम पर भी पहुंचे
जहाँ तक पहुंचना था
आज वह याद आते हैं
बस ओठों पर एक मुस्कान आती है
राह तो आसान नहीं होती
बनाना पड़ता है
फूल नहीं बिछे मिलते सभी को
कांटों से भी सामना होता है
बस चलना मत छोड़ना
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