कुछ न कुछ लगा ही रहता है
कभी लगता है सब ठीक
अचानक फिर कोई उलझन
ऑंख बंद कर लिया था विचार उमड़ घुमड़ रहे थें
लगा सब अंधेरा है अगर ऑंख न होती तो
मुस्कान आ गई मुख पर
उनसे पूछो जिसने रोशनी का दीदार ही न किया हो
इतनी खूबसूरत देन ऊपर वाले की
जग की खूबसूरती को निहार सकते हैं
अगर स्वास्थ शरीर और सही सलामत मिला है
तो उस परवरदिगार का आभार
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