कहानी ख़त्म होने पर टीवी सीरियल को बंद कर देना चाहिए ताकि नया सीरियल शुरू हो सके। लोगो को कुछ नवीनता मिल सके। लेकिन यहाँ सीरियल चार - पाँच वर्षो से चल रहे हैं। कहानी ख़त्म होने के बाद उसमे जबरदस्ती नए चरित्र और प्रसंग डाल कर घसीटा जाता है। सास - बहु के सागा , मर कर जिन्दा होना , एक ही जीवन में दो तीन बार लापता होना। मनोरंजन के नाम पर यह क्या परोसा जा रहा है ? सार्थक कहानी , संदेश, प्रेरणा यह सब कुछ नहीं दिखाई देता है। इन धारावाहिकों का उद्देश क्या है। पता नहीं कौन से युग और कौनसी संस्कृति दिखाई जा रही है। कॉमेडी के नाम पर फूहड़ और द्विअर्थी संवाद।
इनके निर्माणकर्ता को इसपर अवश्य ध्यान देना चाहिए। असली कथानक के साथ ज्यादा छेड - छाड़ और तोड़ - मरोड उसकी जीवंतता को ही कम कर देता हैं। मनोरंजन सार्थक , स्वच्छ और प्रेरणा दायक भी बनाया जा सकता है।
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