पुलिस और जवान भी व्यक्ति है, त्योहारो का मौसम आगया है, एक के बाद दूसरे त्यौहार का आगमन
आतंकवाद का खतरा मंडरा रहा है, पुलिस चौकन्नी और सतर्क, छुट्टिया रद्द, ड्यूटी तो करना ही है।
पर किसी ने उनकी पीड़ा को समझा है ? जब सब लोग त्यौहार के समय अपने परिवार के साथ रहते है तो उनका परिवार उनका इंतज़ार करता रहता है।
आज़ादी के इतने साल बाद भी पुलिस की स्थिति में कितना सुधार आया है ?
उनका वेतन, पुलिस क्वाटर्स, सुविधाये पर्याप्त नहीं।
एक तरफ जनता की उपेक्षित दृष्टि और दूसरी तरफ नगर सेवक से लेकर मंत्री तक का दवाब।
हमेशा इसी ताक में सामजिक संस्थाए भी रहती है की कब पुलिस को घेरा जाए।
तनाव, डिप्रेशन, हार्ट अटैक आदि का शिकार पुलिस वाले हो रहे है।
उनके खाने पीने का प्रबंध, आधुनिक सुविधा से लैस हथियारों की जरूरत है।
अगर हमारा रक्षक ही प्रसन्न, स्वस्थ, चिंता मुक्त नहीं रहेगा तो हमारी रक्षा किस प्रकार करेगा ?
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