वर्तमान युग में खेल - कूद गति, रुतबे, संपत्ति, शक्ति और दम-ख़म का प्रतिक है।
एक समय था जब कहा जाता था -
खेलोगे - कूदोगे. . बनोगे ख़राब
पढोगे - लिखोगे . . बनोगे नवाब
आज परिस्तिथि बदल गयी है।
अब तो देशी खेलो कबड्डी , कुश्ती इत्यादि को भी महत्व मिल राहा है।
लेकिन अभी भी जैसा चाहिए वैसा रुझान नहीं है।
खिलाड़ियों के विकास के लिए ठोस कदम उठाने चाहिए।
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