दीपावली बीत गयी, अब साल भर बाद आएगी,
पर इसके साथ बहुत सवाल छोड़ गयी,
ध्वनि प्रदुषण, वायु प्रदुषण, शोर - शराबा, धुँआ,
पटाको के बारूद के कर्ण अभी भी वातावरण में विद्यमान है।
समय के साथ त्योहारो का भी माप - दंड बदल रहा है,
रंगोली, तोरण, दिए ख़ुशी के प्रतिक थे,
लेकिन आज चका - चौंध त्योहारो पर हावी हो गया है,
जितनी हैसियत उतना दिखावटी खर्च, कही ऐसा तो नहीं की दिवाली ने दिवाला कर दिया हो ?
दिवाली रौशनी और स्वच्छता का संदेश देती है,
अंतरमन - बाह्यमन दोनों को,
त्यौहार मनाये जरूर जाए, पर दिखावे के लिए नहीं,
न उनसे कुछ नुक्सान हो, तभी दिवाली का आनंद है।
पर इसके साथ बहुत सवाल छोड़ गयी,
ध्वनि प्रदुषण, वायु प्रदुषण, शोर - शराबा, धुँआ,
पटाको के बारूद के कर्ण अभी भी वातावरण में विद्यमान है।
समय के साथ त्योहारो का भी माप - दंड बदल रहा है,
रंगोली, तोरण, दिए ख़ुशी के प्रतिक थे,
लेकिन आज चका - चौंध त्योहारो पर हावी हो गया है,
जितनी हैसियत उतना दिखावटी खर्च, कही ऐसा तो नहीं की दिवाली ने दिवाला कर दिया हो ?
दिवाली रौशनी और स्वच्छता का संदेश देती है,
अंतरमन - बाह्यमन दोनों को,
त्यौहार मनाये जरूर जाए, पर दिखावे के लिए नहीं,
न उनसे कुछ नुक्सान हो, तभी दिवाली का आनंद है।
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