आजकल सरकारी सहायता, योजनाये आला अफसरों और चालाक नेताओ के लिए दूधारू गाय बनकर रह गई है, मनरेगा जैसी योजना का भी यही हाल है। मजदूर को काम देने के बदले कमीशन, ग्रामप्रधान के पास जो पैसे पहुँचते है उसका ज्यादा से ज्यादा हिस्सा लोगो की जेबो में जाता है। यहाँ तक की बच्चो को जो मिड - डे मील बाटा जाता है उसमे भी लोगो का हिस्सा।
आखिर यह भ्रष्टाचार रुकने का नाम क्यों नहीं ले रहा है ?
सरकारी नौकरी तो लगता है पैसो का खजाना ही प्राप्त हो गया है,
इन सभी पर नकेल कसने की जरूरत है।
आखिर यह भ्रष्टाचार रुकने का नाम क्यों नहीं ले रहा है ?
सरकारी नौकरी तो लगता है पैसो का खजाना ही प्राप्त हो गया है,
इन सभी पर नकेल कसने की जरूरत है।
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