अच्छे शिक्षकों की कमी है, मोदी जी के अनुसार,
काशी के दौरे के समय उन्होंने व्यक्त किया, सही है क्योंकि हर कोई डॉक्टर, इंजीनियर, सि. ए, एक्टर,
बनना चाहता है पर शिक्षक नहीं।
एक जुमला टीचर, फटीचर होते हैं।
जबकि यह एक नोबल पेशा है, इसका कारण शिक्षकों के हालात भी है।
सरकारी स्कूल में नौकरी है तो ठीक है,
लेकिन प्राइवेट में २ - ३ हज़ार रुपये की नौकरी करने पर मजबूर हैं।
रोटी - रोटी के लिए ट्यूशन, कोचिंग क्लास का सहारा लेते है।
महानगरों की समस्या और भी भयावह है।
वर्नाक्यूलर मीडियम की पाठशाला बंद हो रही है, टीचर सरप्लस हो रहे हैं।
कक्षा में बच्चों की संख्या भी असीमित हैं।
पलकों का दवाब, डिपार्टमेंट का दवाब आदि से भी प्रभावित होता है।
दूसरा ज्ञानार्जन का आभाव, जब स्वयं ज्ञानार्जन करेंगे तभी तो दुसरो को भी ज्ञान देंगे।
अनिच्छा से शिक्षक बना व्यक्ति क्यों कोशिश करेगा।
काशी के दौरे के समय उन्होंने व्यक्त किया, सही है क्योंकि हर कोई डॉक्टर, इंजीनियर, सि. ए, एक्टर,
बनना चाहता है पर शिक्षक नहीं।
एक जुमला टीचर, फटीचर होते हैं।
जबकि यह एक नोबल पेशा है, इसका कारण शिक्षकों के हालात भी है।
सरकारी स्कूल में नौकरी है तो ठीक है,
लेकिन प्राइवेट में २ - ३ हज़ार रुपये की नौकरी करने पर मजबूर हैं।
रोटी - रोटी के लिए ट्यूशन, कोचिंग क्लास का सहारा लेते है।
महानगरों की समस्या और भी भयावह है।
वर्नाक्यूलर मीडियम की पाठशाला बंद हो रही है, टीचर सरप्लस हो रहे हैं।
कक्षा में बच्चों की संख्या भी असीमित हैं।
पलकों का दवाब, डिपार्टमेंट का दवाब आदि से भी प्रभावित होता है।
दूसरा ज्ञानार्जन का आभाव, जब स्वयं ज्ञानार्जन करेंगे तभी तो दुसरो को भी ज्ञान देंगे।
अनिच्छा से शिक्षक बना व्यक्ति क्यों कोशिश करेगा।
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